नाच्यौ बहुत गोपाल वाक्य
उच्चारण: [ naacheyau bhut gaopaal ]
उदाहरण वाक्य
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- “ अब मैँ नाच्यौ बहुत गोपाल ”
- अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल / सूरदास
- अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल-सूरदास
- नाच्यौ बहुत गोपाल / नागर, अमृतलाल.
- सांझ हुई घर आये निर्मला कसप नाच्यौ बहुत गोपाल माँ (मेक्सिम गोर्की)..
- उन दिनों बाबू जी ‘ नाच्यौ बहुत गोपाल ' लिखने में लगे थे.
- वस्तुतः ‘ नाच्यौ बहुत गोपाल ' की कथा का सुंगुम्फन एक बहुत व्यापक कैनवास पर किया गया है।
- लाल पसीना / अभिमन्यु अनत तथा मुर्दों का टीला / रांगेय राघव तथा नाच्यौ बहुत गोपाल / अमृतलाल नागर 4.
- प्रख्यात साहित्यकार नागर जी ने अपने उपन्यास ' नाच्यौ बहुत गोपाल ' के लेखन के दौरान इस पर काफ़ी शोध किया था।
- ‘ नाच्यौ बहुत गोपाल ' यशस्वी साहित्यकार अमृतलाल नागर का, उनके अब तक के उपन्यासों की लीक से हटकर सर्वथा मौलिक उपन्यास है।
- मानस का हंस ' जैसी अमर कृति वे लिख चुके थे और दूसरी कालजयी रचना ‘ नाच्यौ बहुत गोपाल ' वे लिख रहे थे.
- आधा गाँव, झीनी-झीनी बीनी चदरिया, नाच्यौ बहुत गोपाल जैसी रचनाओं को पुरस्कार न मिलने का कारण भी क्या उनमें कही गयीं गालियाँ हैं?
- सेठ बाँकेमल, बूँद और समुद्र्र, सतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, सात घूँघट वाला मुखड़ा, एकदा नैमिषारण्ये, मानस का हंस, नाच्यौ बहुत गोपाल (उपन्यास) व्यंग्य, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी आदि विधाओं में आपने महत्वपूर्ण कार्य किया।
- सेठ बाँकेमल, बूँद और समुद्र्र, सतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, सात घूँघट वाला मुखड़ा, एकदा नैमिषारण्ये, मानस का हंस, नाच्यौ बहुत गोपाल (उपन्यास) व्यंग्य, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी आदि विधाओं में आपने महत्वपूर्ण कार्य किया।
- सेठ बाँकेमल, बूँद और समुद्र्र, सतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, सात घूँघट वाला मुखड़ा, एकदा नैमिषारण्ये, मानस का हंस, नाच्यौ बहुत गोपाल (उपन्यास) व्यंग्य, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी आदि विधाओं में आपने महत्वपूर्ण कार्य किया।
- शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, सात घूँघट वाला मुखड़ा, मानस का हंस, और नाच्यौ बहुत गोपाल जैसी अप्रतिम साहित्यिक कृतियों के लेखक श्री नागर ने अपनी लेखनी से साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं जैसे उपन्यास, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी तथा व्यंग्य को समृद्ध किया है.
- इसी प्रगतिशील जीवनदृष्टि के चलते दलित यथार्थ पर केन्द्रित ‘ धरती धन न अपना ' (जगदीश चंद्र), ‘ महाभोज ' (मन्नू भंडारी), ‘ नाच्यौ बहुत गोपाल ' (अमृत लाल नागर), ‘ परिशिष्ट ' (गिरिराज किशोर), ‘ एक टुकड़ा इतिहास ' (गोपाल उपाध्याय), ‘ मोरी र्की इंट ' (मदन दीक्षित) सरीखे उपन्यास लिखे गए।
- इसमें डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी का ' नृत्य और संगीत कला: आस्वाद पक्ष', डॉ० त्रिवेणी दत्त शुक्ल का 'बुन्देली लोक जीवन के अप्रतिम कवि ईसुरी', डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का 'हिन्दी दलित साहित्य में सौन्दर्यशास्त्र की अवधारणा', डॉ० सरोज सिंह का 'हिन्दी उपन्यास की समाजशास्त्रीय आलोचना: नाच्यौ बहुत गोपाल के विशेष संदर्भ में, डॉ० राजेश कुमार गर्ग का 'आठवें दशक की कहानी में महानगर चेतना', 'प्राचीन भारतीय संस्कारों की वर्तमान में प्रासंगिकता'-श्रीमती मनोज मिश्रा का आलेख शामिल किये गये हैं।
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